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जेलों से छोड़े जाएंगे ये बंदी, CM योगी ने जारी किए निर्देश


लखनऊ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक उच्च स्तरीय बैठक में कारागार प्रशासन एवं सुधार सेवाएं विभाग के कार्यों की समीक्षा की। मुख्यमंत्री योगी ने गम्भीर बीमारियों से ग्रसित बन्दियों की समयपूर्व रिहाई से सम्बन्धित नियमों को और अधिक सरल व स्पष्ट बनाने तथा मानवीय दृष्टिकोण से परिभाषित किए जाने की आवश्यकता पर बल दिया। मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि यह पूरी प्रक्रिया निष्पक्ष त्वरित और मानवीय संवेदनाओं पर आधारित होनी चाहिए। जल्द ही नई नीति का प्रारूप तैयार कर अनुमोदन हेतु प्रस्तुत किया जाए।अधिकारियों ने मुख्यमंत्री योगी को बताया  कि राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण ( N.A.L.S.A) द्वारा सुझाई गई प्रणाली को यूपी में अपनाने पर भी विचार किया जा रहा है। ताकि बन्दियों को न्यायिक अधिकारों का लाभ सुचारू रूप से मिल सके। मुख्यमंत्री योगी ने बैठक में कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का अनुपालन करते हुए प्रदेश की नीति को अधिक पारदर्शी और प्रभावी बनाया जाना चाहिए।पात्र बन्दियों की रिहाई स्वतः विचाराधीन होनी चाहिए।इसके लिए उन्हें अलग से आवेदन न करना पड़े।उन्होंने कहा कि प्राणघातक रोग से पीड़ित होने की आशंका वाले सिद्धदोष बन्दी जिन्हें मुक्त करने पर उनके स्वस्थ होने की उपयुक्त सम्भावना हो वृद्धावस्था अशक्तता या बीमारी के कारण भविष्य में ऐसा अपराध करने में स्थायी रूप से असमर्थ बन्दी जिसके लिए वह दोषी ठहराया गया हो के साथ-साथ घातक बीमारी या किसी प्रकार की अशक्तता से पीड़ित सिद्धदोष बन्दी जिसकी मृत्यु निकट भविष्य में होने की सम्भावना हो के सम्बन्ध में प्रदेश के सभी कारागारों में सर्वेक्षण कर वास्तविक संख्या का आकलन किया जाए। महिलाओं और बुजुर्गों को प्राथमिकता के आधार पर रिहा करने की व्यवस्था की जाए। मुख्यमंत्री योगी ने कहा कि समाज की सुरक्षा सर्वोपरि है। इसलिए समयपूर्व रिहाई उन्हीं मामलों में की जानी चाहिए। जहां से सामाजिक जोखिम न हो. हत्या, आतंकवाद, देशद्रोह, महिला और बच्चों के विरुद्ध जघन्य अपराध जैसे मामलों में रिहाई कतई नहीं की जानी चाहिए।कैदियों को कृषि, गोसेवा आदि कार्यों से जोड़कर उनकी जेल अवधि के सदुपयोग करने की व्यवस्था की जाए।उन्होंने कहा कि जेल मैनुअल में यह भी स्पष्ट रूप से परिभाषित किया जाना आवश्यक है कि किन बीमारियों को असाध्य रोग की श्रेणी में रखा जाएगा। प्रत्येक वर्ष जनवरी मई और सितम्बर माह में पात्र बन्दियों के मामलों की स्वतः समीक्षा की व्यवस्था की जाए।यदि किसी बन्दी को रिहाई न दी जाए तो उसके कारण स्पष्ट रूप से दर्ज किए जाएं और उसे उस निर्णय को चुनौती देने का अधिकार प्रदान किया जाए।

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