नंद के आनंद भयो जय कन्हैया लाल की...घर-घर गूंजी बधाई
आनंद और उल्लास में डूबे भक्त अपने आराध्य के जन्म की प्रतीक्षा में शनिवार मध्यरात्रि को घड़ी की ओर टकटकी लगाकर देखते रहे। रात्रि के 12 बजते ही भादों की अंधेरी रात में अष्टमी पर ब्रज में कन्हैया ने जन्म लिया। इस मौके पर जन्मोत्सव के लाखों श्रद्धालु साक्षी बने। भक्तों का उल्लास ऐसा था कि मानो ब्रज द्वापर युग के कालखंड को जी उठा हो। उस आनंद के क्षण से निकलने को तैयार ही नहीं। कान्हा की देहरी पर उमड़ा उल्लास और भावों का अश्रुपूरित सैलाब अवर्णनीय रहा।
प्रभु के जन्म के बाद ब्रज का कण-कण धन्य हो उठा।कान्हा के जन्म पर मंत्रोच्चारण के बीच शंखनाद हुआ, तो मानो ब्रज की लता-पता भी झूम उठीं। गोकुल सहित पूरे ब्रज के मंदिरों में प्रगट भये गोपाला और बधाई गीतों से माहौल भक्तिमय हो गया। श्रीकृष्ण के जन्मस्थान पर माहौल कुछ ऐसा रहा कि घड़ी की सुई ने रात को 11 बजने का इशारा किया तो श्रीगणेश, नवगृह स्थापना के साथ पूजन शुरू हुआ। 11.55 बजे तक कमल पुष्प एवं तुलसीदल से सहस्त्रार्चन हुआ। अब 12 बजने में में बस पांच मिनट बाकी थे। हर श्रद्धालु लल्ला के आगमन को लेकर आतुर था। 11.59 बजते ही प्राकट्य दर्शन के लिए युगल सरकार के पट बंद हो गए। इस एक मिनट के पल में श्रद्धालुओं को लगा मानो घंटों बीत रहे हों।ठीक 12 बजे लीलाधर के चलित श्रीविग्रह को भागवत भवन लाया गया। यहां रजत कमल पुष्प में विराजमान भगवान श्रीकृष्ण का श्रीकृष्ण जन्मस्थान ट्रस्टी ने सोने-चांदी से निर्मित 100 किग्रा की कामधेनु गाय की प्रतिमा में गंगाजल सहित पंचामृत भरकर लल्ला का अभिषेक किया। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर शनिवार को भक्तों ने कान्हा के लिए व्रत रखा और परिवार में सुख-समृद्धि की कामना की। लड्डू गोपाल को सुबह स्नान कराकर नई पोशाक व मुकुट धारण कराया। घर-घर में मंदिर को सजाया। लल्ला के लिए भी खेल-खिलौने मंदिर में सजाए गए। विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर पूरे दिन व्रत रखा।
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