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हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया उम्रकैद का मतलब अंतिम सांस तक सजा

 


लखनऊ इलाहाबाद हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया है कि उम्रकैद की सजा अभियुक्त के प्राकृतिक जीवन तक है, जिसे कोर्ट द्वारा वर्षों की संख्या में तय नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि यह राज्य सरकार का विवेकाधिकार है कि वह जेल में कम से कम 14 साल की सजा काटने के बाद आजीवन कारावास की सज़ा में छूट दे।लेकिन उम्रकैद या आजीवन कारावास की सजा का मतलब अभियुक्त की आखिरी सांस तक है। यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति सुभाष चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने महोबा जिले के कुलपहाड़ थाने के अंतर्गत 1997 में हुई हत्या के मामले में दाखिल फूल सिंह व अन्य (तीन अपीलों) को खारिज करते हुए दिया है।कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा। कोर्ट मामले में आरोपी बनाए गए फूल सिंह, कल्लू और जोगेंद्र व अन्य की ओर से दाखिल अपील पर सुनवाई कर रही थी। महोबा की जिला अदालत ने तीनों अभियुक्तों को हत्या सहित आईपीसी की अलग-अलग धाराओं में आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। तीनों आरोपियों ने निचली अदालत के फैसले को चुनौती थी। याचियों की ओर से कहा गया कि उन्हें जेल में रहते हुए 20-21 साल हो गए हैं। याचियों की मांग थी कि उन्हें छोड़ दिया जाए।

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