सुल्तानपुर दुर्गा पूजा महोत्सव,कोलकाता के बाद दूसरा सबसे प्रसिद्ध
सुल्तानपुर जनपद का ऐतिहासिक दुर्गा पूजा महोत्सव कोलकाता के बाद देश में दूसरा सबसे प्रसिद्ध है। इस वर्ष जिले में 800 से अधिक दुर्गा प्रतिमाएं विभिन्न पूजा पंडालों में स्थापित की गई हैं। भव्य पंडाल और आकर्षक विद्युत सज्जा श्रद्धालुओं के लिए मुख्य आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। सोमवार को महोत्सव का अंतिम दिन होगा। जिसके बाद मंगलवार से प्रतिमा विसर्जन की तैयारियां शुरू हो जाएंगी।
महोत्सव के दौरान देवी गीतों से वातावरण भक्तिमय बना हुआ है। जगह-जगह भंडारे और स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा निःशुल्क दवा शिविर लगाए गए हैं। सुरक्षा व्यवस्था के लिए चप्पे-चप्पे पर पुलिसकर्मी तैनात हैं। सीसीटीवी कैमरों और ड्रोन से लगातार निगरानी की जा रही है। भक्तों की सेवा और सहयोग के लिए अपराध निरोधक, जिला सुरक्षा संगठन और केंद्रीय पूजा व्यवस्था समिति सहित कई कैंप कार्यालय संचालित किए जा रहे हैं।
सुल्तानपुर के दुर्गा पूजा महोत्सव की विसर्जन शोभायात्रा इसे और भी खास बनाती है। सप्ताह भर चलने वाले इस महोत्सव का समापन तीन दिनों तक चलने वाली विसर्जन शोभायात्रा के साथ होता है। इसमें प्रसिद्ध बैंड-डीजे, गाजे-बाजे और कई राज्यों से आए कलाकार अद्भुत झांकियों और नृत्य कला का प्रदर्शन करते हैं। शहर के ठठेरी बाजार से जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक हरी झंडी दिखाकर शोभायात्रा को रवाना करते हैं।यह विसर्जन शोभायात्रा नगर के प्रमुख मार्गों से होते हुए सीताकुंड धाम पहुंचती है। यहां मां गोमती की पवित्र धारा में दुर्गा प्रतिमाओं का विसर्जन किया जाता है।
इस भव्य विसर्जन को देखने के लिए आसपास के जिलों से लाखों लोग उमड़ते हैं।दरअसल यहां दुर्गापूजा की शुरुआत शहर के ठठेरी बाजार में वर्ष 1959 में भिखारी लाल सोनी के नेतृत्व में हुई थी। इस दौरान दुर्गाभक्तों के एक दल ने श्रीदुर्गा माता पूजा समिति की स्थापना की थी। इसकी प्रतिस्पर्धा में शहर के रूहट्ठा गली, लखनऊ नाका , पंचरास्ते, ठठेरी बाजार और चौक में सरस्वती माता पूजा समिति की स्थापना हुई।उस समय मूर्तियों के विसर्जन के लिए ट्रैक्टरों आदि की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। मां की प्रतिमाओं को कहारों के कंधों से ले जाया जाता था।
विसर्जन शोभायात्रा में दुर्गा प्रतिमा को आठ से अट्ठारह कहार अपने कंधों पर रखकर शहर भ्रमण करते हुए गोमती नदी के सीताकुण्ड घाट तक ले जाते थे।वर्ष 1972 के बाद से देवी मां की प्रतिमाओं में बढ़ोत्तरी हुई, छह दशक पूरे होने तक सिर्फ शहर में ही डेढ़ सौ प्रतिमाएं स्थापित हो रही हैं जबकि समूचे सुल्तानपुर में 800 से ज्यादा मां दुर्गा की प्रतिमाएं विधिविधान से पूजा-पण्डालों में स्थापित की जाती हैं। वर्ष 1983 के बाद से शहर के अन्दर जगह-जगह अनेक मंदिरों का दृश्य कारीगरों द्वारा पंडाल के रुप में देखने को मिलता रहा है। जिसमें लाखों का खर्च आता है।
कोई टिप्पणी नहीं