नसबंदी के बाद महिला ने बच्ची को दिया जन्म, कोर्ट ने दिया मुआवजे देने का आदेश
प्रयागराज में एक महिला ने नसबंदी के बाद भी एक बच्चे को जन्म दिया। इस मामले में स्थाई लोक अदालत ने डॉक्टरों की गंभीर चूक मानते हुए यूपी सरकार को मुआवजा देने का आदेश दिया है। यह फैसला याची अनीता देवी द्वारा दायर एक वाद के बाद आया। जिसमें उन्होंने मऊआइमा के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में हुई नसबंदी की विफलता के लिए मुआवजे की मांग की थी।स्थाई लोक अदालत के चेयरमैन विकार अहमद अंसारी और सदस्य डॉ. रिचा पाठक व सत्येंद्र मिश्रा की पीठ ने इस मामले में सुनवाई के बाद सरकार को स्पष्ट निर्देश जारी किए। अदालत ने आदेश दिया कि याची की अनचाही संतान, एक बच्ची, के पोषण के लिए सरकार 2 लाख रुपये का एकमुश्त मुआवजा दे। इसके अलावा बच्ची की शिक्षा और रखरखाव के लिए 5 हजार रुपये प्रतिमाह तब तक दिए जाएं। जब तक वह 18 वर्ष की आयु पूरी नहीं कर लेती या ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त नहीं कर लेती। जो भी पहले हो. साथ ही नसबंदी विफलता के कारण याची को हुई मानसिक और शारीरिक पीड़ा के लिए 20 हजार रुपये का अतिरिक्त मुआवजा देने का भी निर्देश दिया गया।याची अनीता देवी ने अपनी अर्जी में बताया कि उनके पहले से ही कई बच्चे हैं। परिवार नियोजन के उद्देश्य से उन्होंने मऊआइमा, प्रयागराज के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में डॉ. नीलिमा द्वारा नसबंदी करवाई थी। उन्हें आश्वासन दिया गया था कि ऑपरेशन सफल रहा और अब उन्हें कोई और संतान नहीं होगी। हालांकि कुछ समय बाद उन्हें शारीरिक परेशानी हुई।जिसके बाद 31 जनवरी 2014 को कराए गए अल्ट्रासाउंड से पता चला कि वह 16 सप्ताह और 6 दिन की गर्भवती हैं।बाद में उन्हें एक लड़की पैदा हुई. इस घटना से आहत अनीता ने डॉक्टरों की लापरवाही को जिम्मेदार ठहराते हुए प्रयागराज के मुख्य चिकित्सा अधिकारी को पक्षकार बनाकर स्थाई लोक अदालत में वाद दायर किया। उन्होंने इस चूक के लिए उचित मुआवजे की मांग की थी।अदालत ने अपने आदेश में कहा कि नसबंदी में विफलता डॉक्टरों की गंभीर लापरवाही को दर्शाती है। जिसके परिणामस्वरूप याची को न केवल शारीरिक और मानसिक कष्ट हुआ। बल्कि एक अनचाही संतान का पालन-पोषण करने की जिम्मेदारी भी आ पड़ी।अदालत ने इसे एक सामाजिक और आर्थिक बोझ माना और सरकार को मुआवजे का आदेश दिया।
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