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सिविल सेवा परीक्षा में फर्जी सर्टिफिकेट घोटाला उजागर


भारत सरकार के कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग (DOPT) ने सिविल सेवा परीक्षा (CSE) में फर्जी आरक्षण प्रमाणपत्रों के इस्तेमाल को लेकर बड़ा कदम उठाया है। यह कार्रवाई एक विस्तृत शिकायत के बाद शुरू की गई है।जिसमें 2015 से 2023 के बीच परीक्षा देने वाले कई अभ्यर्थियों पर फर्जी प्रमाणपत्रों के आधार पर चयन का आरोप लगाया गया है।जिन अधिकारियों की प्रारंभिक जांच में पुष्टि हुई है। उनमें 11 IAS, 2 IPS, 1 IFS, और 1 IRS अधिकारी शामिल हैं। इन सभी ने EWS, SC, ST, OBC-NCL, और PWBD जैसी आरक्षित श्रेणियों के तहत गलत प्रमाणपत्रों का इस्तेमाल किया है। ऐसा आरोप है।शिकायतकर्ता ने 16 अगस्त 2024 को एक विस्तृत शिकायत दायर की थी।जिसमें आरक्षण श्रेणियों के तहत जमा किए गए प्रमाणपत्रों में गंभीर अनियमितताओं की ओर इशारा किया गया था। इसके आधार पर UPSC के माध्यम से शिकायतें DOPT को भेजी गईं।जिसने राज्य सरकारों और केंद्रीय मंत्रालयों को दस्तावेजों की सत्यता की जांच करने का निर्देश दिया।जिन राज्यों को इस जांच में शामिल किया गया है।उनमें राजस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, ओडिशा, बिहार, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और केरल शामिल हैं।इसके साथ ही गृह मंत्रालय, राजस्व विभाग और विदेश मंत्रालय जैसी केंद्रीय एजेंसियां भी सक्रिय रूप से जांच में भाग ले रही हैं।DOPT की प्रारंभिक जांच में यह सामने आया है कि कई प्रमाणपत्रों की वैधता पर सवाल खड़े हुए हैं।22 अधिकारियों को शुरू में चिन्हित किया गया था।जिनमें से 15 की पुष्टि हो चुकी है कि उन्होंने संदिग्ध दस्तावेजों के आधार पर नियुक्तियां प्राप्त की हैं।इस मामले की गंभीरता को देखते हुए DOPT अब गहन जांच की दिशा में आगे बढ़ रहा है। केवल प्रमाणपत्रों की सत्यता ही नहीं बल्कि उन्हें जारी करने वाले प्राधिकरणों से भी औपचारिक स्पष्टीकरण मांगा गया है।यह घोटाला न सिर्फ सिविल सेवाओं की निष्पक्षता पर सवाल खड़ा करता है। बल्कि ऐसे योग्य उम्मीदवारों के साथ अन्याय भी है जो नियमों का पालन करते हुए प्रतियोगी परीक्षाओं में शामिल होते हैं।DOPT की यह कार्रवाई यह संकेत देती है कि फर्जी दस्तावेजों के आधार पर उच्च पदों पर चयन अब बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।यदि जांच में दोष सिद्ध होता है‌ तो इन अधिकारियों के खिलाफ कड़ी प्रशासनिक और कानूनी कार्रवाई की जा सकती है।

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