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सुलतानपुर में पिता-बेटी एक साथ बने लेखपाल,सेना से रिटायर होकर शुरू की तैयारी


सुलतानपुर जिले में एक रिटायर्ड फौजी पिता और उनकी बेटी ने एक साथ लेखपाल का एग्जाम पास किया है। दोनों ने एक साथ पढ़ाई की और जब 31 दिसंबर को लेखपाल का रिजल्ट आया तो दोनों का नाम देखकर परिवार में सब खुश हो गए।इसके बाद पिता-बेटी दोनों अपनी-अपनी सफलता का श्रेय एक-दूसरे को देने लगे। जिले में भी दोनों की खूब चर्चा हो रही है। मामला बल्दीराय तहसील अंतर्गत उमरा पूरे जवाहर तिवारी गांव का है।पिता का नाम रवींद्र त्रिपाठी (50) है। जबकि उनकी बेटी का नाम प्रिया त्रिपाठी है। रवींद्र ने जिला शिक्षा एवं प्रशिक्षण संस्थान से डीएलएड (डिप्लोमा इन एलीमेंट्री एजुकेशन) का प्रशिक्षण लिया। वहीं बेटी ने डीएड (डिप्लोमा इन एजुकेशन) किया है। फिर रवींद्र और प्रिया ने लखनऊ में राजस्व लेखपाल की परीक्षा दी, जिसमें दोनों एक साथ सफल हो गए।रवींद्र त्रिपाठी ने हमें बताया, ''इंटरमीडिएट की परीक्षा पास करने के बाद 19 साल की उम्र में मैंने 5 मार्च, 1991 को सेना ज्वॉइन की थी। नौकरी में रहते हुए प्राइवेट फॉर्म भरकर राणा प्रताप महाविद्यालय से 2004 में ग्रेजुएशन किया।28 साल की सेवा देने के बाद मैं सेना से सूबेदार के पद से 5 मार्च, 2019 में रिटायर्ड हो गया। लेकिन ये समय मेरा घर बैठने का नहीं था। मुझे लगता था, अब कहीं और नौकरी करनी चाहिए। मेरे पिता ने भी मुझसे यही बोला। घर में मेरा मन भी नहीं लगता था।मैंने अपने पिता की बात मानी और सरकारी नौकरी की तैयारी शुरू कर दी। मेरा बैंक सेक्टर में जाने का लक्ष्य था, लेकिन उम्र ज्यादा होने के कारण वहां पर नौकरी मिलना संभव नहीं था। इसके बाद मेरा रुझान यूपीएसआई की तरफ हो गया।उसमें काफी पद भी आए थे। मैंने इस एग्जाम के लिए रात-दिन पढ़ाई करना शुरू कर दिया। मेरी मैथ्स हमेशा से बहुत अच्छी थी। उसमें मुझे जरा भी दिक्कत नहीं हुई। उसके साथ मैंने GK की पढ़ाई भी शुरू कर दी।पढ़ाई के साथ मैं रनिंग भी करता था। मैं समय के अनुसार अपनी रनिंग पूरी कर लेता था। जिसके बाद मेरे अंदर काफी कॉन्फिडेंस आ गया। मैंने इसका एग्जाम दिया और वो मैंने पास भी कर लिया। इसका नियुक्ति पत्र भी मुझे मिल गया था।बेटी कहती थी- पापा पढ़ाई करो..आपको हर हाल में ये एग्जाम पास करना हैमैंने एसआई की नौकरी जॉइन नहीं की थी। मैंने इसके साथ लेखपाल का एग्जाम भी दिया था, जो बहुत अच्छा हुआ था। मेरी बेटी ने भी मेरे साथ ही लेखपाल का एग्जाम दिया था। वो मुझको हमेशा पढ़ने के लिए बोलती थी। कहती थी- पापा पढ़ाई करो..आपको हर हाल में ये एग्जाम पास करना है।मैं भी देश के साथ अब समाज-सेवा करना चाहता था। इस बेरोजगारी में मेरे लिए एक नौकरी छोड़कर दूसरी की तैयारी करना आसान नहीं था। लेकिन फिर भी मैंने ऐसा किया।और आखिर में मेरे हाथ सफलता ही आई। मैं तो लोगों से यही कहना चाहूंगा, जो भी सरकारी नौकरी पाना चाहते हैं, फोन से दूर हो जाएं। मेहनत करें, पढ़ाई करें और किताबें पढ़ें..सफलता उनको आसानी से मिल जाएगी।जब मैं इस उम्र में नौकरी पा सकता हूं, तो कम उम्र वालों के लिए तो ये और आसान है..बस जरूरत है तो लगन की। इसके बाद अब मैं समीक्षा अधिकारी के एग्जाम की तैयारी करूंगा। मेरे पिता कहते हैं, पढ़ाई की कोई सीमा, कोई उम्र नहीं होती..जब तक क्षमता है पढ़ते रहो। उनकी बात मानकर मैं आगे भी पढ़ाई करता रहूंगा।

प्रिया बोली- मुझे सबसे ज्यादा मेरे पापा ने प्रेरणा दी है

प्रिया ने हमें बताया, ''इस एग्जाम के लिए मेरे पापा ने मुझे प्रेरित किया। मैं जिन भी एग्जाम के फॉर्म भरा करती थी, वो भी मेरे साथ उस एग्जाम के फॉर्म भरा करते थे। मेरे कई सारे एग्जाम ऐसे थे, जो क्लियर नहीं हो पाए थे। लेकिन उनके वो एग्जाम भी क्लियर हो गए थे। ऐसे में मुझे लगता था, कहीं न कहीं मेरी मेहनत में कमी है।हम साथ में पढ़ते हैं। फिर भी पापा सारे एग्जाम निकाल रहे हैं और मुझे सफलता नहीं मिल रही। उनकी तो उम्र भी ज्यादा है, फिर भी वो मुझसे ज्यादा मेहनत कर रहे हैं। पापा की इस बात से मुझे बहुत प्रेरणा मिलती थी।मेरी सारी पढ़ाई आर्मी स्कूल से हुई है। मेरा बैचलर लखनऊ यूनिवर्सिटी से पूरा हुआ है। मैंने डीएड भी किया है। उसके बाद मैंने सरकारी नौकरी की तैयारी शुरू कर दी थी।''मैंने पहले बैंक के एग्जाम दिए, लेकिन वो क्लियर नहीं हो पाए। उसके बाद मैंने एसएससी का पेपर भी दिया, लेकिन वो भी नहीं निकल पाया। लेकिन मैं हिम्मत नहीं हार रही थी।उसके बाद मैंने लेखपाल का एग्जाम दिया, जो अब क्लियर हो गया है। नए साल में इससे अच्छा कुछ नहीं हो सकता है। मैं ये एग्जाम पास कर पाई, इसका कारण बस मेरे पापा हैं। उन्होंने कभी मुझे हारने नहीं दिया।घर में एक मेरा छोटा भाई भी है। वो मुझसे 7 साल छोटा है। उसने 4 बार एनडीए का एग्जाम पास किया। उसको देखकर मुझे बस यही लगता था, जब ये इतनी कम उम्र में इतना बड़ा एग्जाम पास कर रहा है तो फिर मैं क्यों नहीं कर सकती?उसको देखकर मुझे बहुत प्रेरणा मिलती थी। मेरी पढ़ाई आगे भी जारी रहेगी। जब तक उम्र और हौसला है...मैं पढ़ती रहूंगी।''

रवींद्र के पिता बोले- मैं बच्चों से हमेशा पढ़ाई की बात करता था

रवींद्र के पिता अपने बेटे और पोती की सफलता से बेहद खुश हैं। वह कहते हैं, ''जब मेरे बच्चे छोटे थे, तो मैं उनको कहीं ज्यादा जाने नहीं देता था। बच्चों को हमेशा अपने साथ ही घुमाने ले जाता था।उनसे हमेशा पढ़ाई की ही बात करता था। उनका स्कूल का सारा काम मैं खुद करवाता था। आज वही शिक्षा मेरे बच्चों के काम आ रही है। मेरा आशीर्वाद उनके साथ हमेशा है, वो ऐसे ही आगे भी सफल होते रहें।''

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