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यूपी : वो बेजुबां नहीं..लेकिन बोल नहीं सकते..वो उम्र दराज हैं मगर सोच है बच्चों जैसी..जानिए


सुलतानपुर जन कल्याण संस्था के सदस्य मानसिक दिव्यांग स्कूल पहुंचकर ऐसों बच्चों को दिया अपनत्व, नाचे-थिरके दिव्यांग..खुशी का किया इजहार।वो बेजुबां नहीं लेकिन बोल नहीं सकते। वो उम्र दराज हैं मगर सोच बच्चों जैसी है। वो जवान हैं लेकिन ख्वाहिशें जाहिर नहीं कर सकते.. इसलिए कि ये सभी मानसिक दिव्यांग हैं। जन कल्याण संस्थान की टीम जब इनके मध्य पहुंची तो इनका दर्द जान वे सभी कुछ पल आवक रह गए। लेकिन जैसे ही संस्था के सदस्यों द्वारा मानसिक दिव्यांगों को अपनापन मिला तो सभी तालियां बजाते हुए झूम उठे।

.ये दास्तां है शहर से लगभग पंद्रह किलोमीटर दूर अमेठा स्थित मानसिक दिव्यांग लोगों के स्कूल में मौजूद मानसिक दिव्यांग बच्चों की।दरअस्ल जिले की जन कल्याण सामाजिक संस्था इधर कई वर्षों से अपने सामाजिक कार्यो के चलते समाज मे चर्चा का विषय बनी हुई है,संस्था के सदस्य हर मौकों पर समाज के उस वर्ग के मध्य पहुंचते हैं,जिसे समाज ने अछूता बना रखा है। इसी कड़ी में इस नए वर्ष के पहले हप्ते पर भी झुग्गी झोपड़ियों,वृद्धा आश्रम और दिव्यांग स्कूल जन कल्याण संस्थान की टीम पहुंची।

जन कल्याण संस्थान की अध्यक्षा ज्योति सिंह बताती हैं कि टीम दिव्यांग बच्चों के लिए समोसे चाकलेट,केक,मंजन,ब्रश,टॉफी,साबुन,तेल और पढ़ाई से संबंधित वस्तुएं मिठाईयां लेकर रिहाई विल टेशन सेंटर पहुंची। स्थिति ये रही कुछ देर यहां दिव्यांग अपने दिमाग पर जोर देते रहे कि आखिर ये इतने लोग आए क्यों.? ये हैं कौन.? लेकिन धीरे-धीरे जब जन कल्याण के साथियों ने उन्हें लाड और प्यार दिया तो वे सभी दिव्यांग बच्चे झूम कर नाचने लगे।आपको बताते चलें अमेठा गांव में मानसिक दिव्यांग बच्चों के स्कूल में 35 के आसपास बच्चे हैं।

यहां उन्हें शिक्षा-दिक्षा दी जाती है। कई लावारिस दिव्यांग बच्चों को भी यहां शिक्षा दी जाती है। संस्था की सदस्य सुषमा वर्मा ने बताया कि स्कूल की प्रबंधक स्वयं दिव्यांग हैं। उन्होंने कहा ये पैकेट्स व बोतल इन्हें दिया नहीं जा सकता। वो इसलिए कही साबुन की रंगीन पैकेट चॉकलेट समझ और तेल की बोतल को कोल्डड्रिंक समझ ये गटक ना लें। अब अंदाज़ा लगाया जा सकता है ऐसों बच्चों को जब उनके पढ़ने के लिए बुक्स,कापियां व उनके जरूरत के सामान मिले होंगे तो उनकी खुशियों का ठिकाना क्या रहा होगा।

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