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सांझा संस्कृति को बचाने में साहित्य का योगदान महत्वपूर्ण - डॉ.लक्ष्मण प्रसाद


सुलतानपुर संस्कृति सामंजस्य स्थापित करती है। जो लचकना नहीं जानता उसका वजूद खत्म हो जाता है। भारतीय संस्कृति का लचीलापन उसे पूरी दुनिया में सर्वश्रेष्ठ बनाता है। सांझा संस्कृति को बचाए रखने में साहित्य का योगदान महत्वपूर्ण है।' यह बातें इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ लक्ष्मण प्रसाद गुप्ता ने कहीं।वह राणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय व राजकमल प्रकाशन समूह द्वारा संचालित पुस्तक प्रदर्शनी में  'हिंदी साहित्य और सांझी संस्कृति' विषय पर आयोजित संगोष्ठी को बतौर मुख्य वक्ता सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि कवि मनुष्यता को स्थापित करता है। मनुष्यता धीरे धीरे विकसित होती है। संगोष्ठी के विशिष्ट अतिथि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ जनार्दन ने कहा कि सांझी संस्कृति मनुष्यता के निर्माण की प्रक्रिया है। साहित्य समाज में टूटती हुई सांझी संस्कृति को  बचाता है। तमाम संस्कृतियां अब इस तरह एक हो गई हैं कि उन्हें अलगाया नहीं जा सकता ।अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर राधेश्याम सिंह ने कहा कि  हिंदुस्तान की संस्कृति साझे की संस्कृति है । सांझापन मनुष्य की प्रकृति में है। हिंदी साहित्य लगातार इस बात पर जोर देता है कि हमारा सांझापन बना रहे। स्वागत व विषय प्रवर्तन करते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष इन्द्रमणि कुमार ने कहा कि सांझापन ही हमारे देश का सौंदर्य है साहित्य इसे सजाता और संजोता है।आभार ज्ञापन पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर डॉ.एम.पी.सिंह  व संचालन प्रदर्शनी सह संयोजक असिस्टेंट प्रोफेसर ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह रवि ने किया। इस अवसर पर महाविद्यालय के शिक्षक व विद्यार्थी उपस्थित रहे।

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