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बेंगलुरु से जयपुर आ रही फ्लाइट में महिला ने दिया बच्चे को जन्म

 


नई दिल्ली  बेंगलुरु से  जयपुर आ रही फ्लाइट में बुधवार को 38 हजार फीट की ऊंचाई पर पैदा हुआ बच्चा पूरी तरह स्वस्थ है। मां ललिता के साथ फिलहाल वह ब्यावर के जेवाजा गांव स्थित अस्पताल में भर्ती है। एक-दो दिन में घर के लिए छुट्‌टी मिल जाएगी। बेंगलुरु में ऑटाे रिक्शा ड्राइवर भैरो सिंह पत्नी ललिता की डिलीवरी अपने घर पर ही कराना चाहते थे। डॉक्टर ने एक महीने का समय दे दिया था और बताया था कि फ्लाइट में लेकर जाओ, कोई दिक्कत नहीं है।ऐसे में जब पति के साथ ललिता ने फ्लाइट में उड़ान पर थी तो अचानक लेबर पेन हुआ। क्रू मेंबर्स की मदद से जयपुर आ रही एक डॉक्टर यात्री ने प्रसव कराया। जिस समय विमान ने जयपुर एयरपोर्ट पर लैंडिंग की पोजिशन ली, ललिता का बेटा एक क्रू के हाथ में किलकारियां भरता हुआ दिखाई दिया मैं पहली बार विमान में बैठी थी। डॉक्टर ने कहा था कि अभी कोई दिक्कत नहीं है। आप फ्लाइट में जाइए। मेरे पति के साथ मैं विमान में बैठ गई। वहां मैंने एयर हॉस्टेस को पहले ही बता दिया था कि मैं अपने गांव डिलीवरी कराने के लिए जा रही हूं। इसलिए वे पहले से ही सजग थीं और बार-बार मुझसे पूछ रही थीं कि आपको कोई दिक्कत तो नहीं। उड़ान के करीब एक घंटे बाद मैं वॉशरूम गई तो मुझे कुछ गड़बड़ लगा। ब्लड की शिकायत पर मैंने क्रू को बताया। उन्होंने तुरंत संभाला और अनाउंस किया- विमान में कोई डॉक्टर है तो तुरंत संपर्क करें। पूरे विमान में हलचल मच गई। कयास लगाने लगे कि पता नहीं क्या हो गया। मैं 10-ए सीट पर थी और एक डॉक्टर सुबहाना नजीर 10-सी सीट पर बैैठी थीं। वे तुरंत उठीं और मुझ तक पहुंचीं।मैं घबरा गई थी। जिसके बारे में कल्पना भी नहीं की थी, वो हो सकता है। ऐसा सोचकर भी रूह कांप उठी थी। पति परेशान थे। अब क्या होगा? मैं तो खुद को संभाल पाने की स्थिति में नहीं थी। यहां तो कोई हॉस्पिटल भी नहीं है। उड़ता विमान, लेबर पेन, बच्चों की शक्लें, जीवन-मरण की परिस्थितियां, सब आंखों के सामने जैसे मंडराने लगी थीं। बात-बात पर ध्यान रखने वाले पति असहाय थे। पता नहीं विमान कितनी देर में जयपुर लैंड करेगा। उससे पहले आखिर क्या होने वाला है। कोई नहीं जानता था सिर्फ ईश्वर के। क्या होगा मेरे बच्चे का भविष्य? जिसको सकुशल जन्म देने के लिए मैंने इतना ऊंचा उड़ने की रिस्क ली। क्या वह इसी ऊंचाई में मुंह दिखाएगा। सवालों पर सवाल खड़े हो रहे थे और दिलासों और भरोसे का आशीर्वाद मुझे वहां मौजूद यात्रियों में से बीच-बीच में मिलता जा रहा था।विमान में मौजूद एकमात्र डॉक्टर परिस्थिति को भांप चुकी थीं। क्रू मेंबर्स ने भी इस तरह की स्थिति का संभवत: पहली बार सामना किया था। इसलिए वे ज्यादा सतर्क तो थीं, लेकिन थोड़ी टेंशन में भी थीं। शुरू में उन्होंने मुझे वॉक करने को कहा, लेकिन जब पेन ज्यादा हुआ तो उन्होंने मुझे सीट पर ही लेटने को कह दिया था। डॉक्टर ने अपना काम शुरू कर दिया था। क्रू ने जरूरी सामग्री उपलब्ध करा दी थी। देखते-देखते विमान के बीच वाले हिस्से को पूरी तरह खाली कर दिया गया था। पुरुषों को आगे और पीछे की ओर भेज दिया गया। महिलाएं मेरे चारों ओर घेरा बना चुकी थीं। मैं समझ चुकी थी कि अब हॉस्पिटल पहुंचने से पहले ही डिलीवरी की तैयारी है, लेकिन इसके अलावा कोई विकल्प भी मुझे नजर नहीं आ रहा था। इतनी ऊंचाई पर सब कुछ ऊपर वाले के हाथ छोड़ दिया था।विमान में 116 यात्री थे। करीब एक घंटे बाद लेबर पेन शुरू हुआ और करीब दो घंटे बाद विमान में बेटा हुआ। यानी जब विमान ने लैंड किया तो यात्रियों की संख्या 117 हो चुकी थी। जब डॉक्टर और क्रू मेंबर्स अपना काम कर रहे थे, मैं लगातार ईश्वर को याद कर रही थी। क्या होने वाला था यह तो पता नहीं था, लेकिन मुझे धीरे से बताया गया कि जयपुर एकदम नजदीक है और विमान लैंडिंग की पोजिशन ले रहा है। तेज पेन के बीच हल्की-हल्की यह आवाज अगले ही क्षण किलकारी में बदल गई। तालियों की गड़गड़ाहट के बीच मैंने देखा- मेरा 'आकाश' डॉक्टर के हाथों में था। यह मैं सपना तो नहीं देख रही। पति ने बताया कि सपना नहीं, तुझे बेटा हुआ है। मेरे लिए तो यह सिर्फ चमत्कार ही था। यात्रियों ने बोला- हम सबके लिए एक यादगार पल, जो एक लंबी कहानी बन गया। किस्सा बन गया, हर यात्रा में पड़ोस के यात्री को बताने का, घर के हर सदस्य, मित्रों को बताने का।​​​​​​ललिता के पति भैरो सिंह ने बताया कि इंडिगो स्टाफ ने लैंड करने से पहले ही एयरपोर्ट को सूचना दे दी थी। यहां एंबुलेंस तैयार थी तो हम ललिता को लेकर एंबुलेंस से ईएचसीसी अस्पताल पहुंच गए। प्राइवेट अस्पताल होने के कारण यहां का खर्च ज्यादा था, इसलिए हम सिर्फ आधा घंटे में ही ललिता को गांव जैवाजा के अस्पताल ले गए। यह हमारे गांव जाली रूपावास के पास ही पड़ता है, जो ब्यावर कस्बे में है।

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