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फिल्टर से बह रहे पानी को जमा करें तो दूर हो सकता है पानी की किल्लत

रिपोर्ट- योगेश यादव
जिले में शहर के साथ कई स्थानों पर लोग पानी के लिए जूझ रहे हैं।जिले में शहर के साथ कई स्थानों पर लोग पानी के लिए जूझ रहे हैं। वहीं कुछ स्थानों पर शुद्ध पेयजल के फिल्टर प्लांट के जरिए हम लाखों लीटर पानी हर रोज बर्बाद कर रहे हैं। शहर में व्यवसायिक आरओ प्लांट और घरों में लगे आरओ फिल्टर के जरिए तीन लाख लीटर पानी बर्बाद हो रहा है। अगर हम आरओ से निकले वेस्ट वाटर (जो फिल्टर होने के बाद मशीन से बाहर फेंका जाता है) को जमा कर उसका उपयोग अन्य कार्यों के लिए करें तो हर रोज कुछ मोहल्लों को जलसंकट से बचा सकते हैं।

बढ़ते तापमान, शहरीकरण, पेड़ों की कटाई और जल के दुरुपयोग के कारण जिले में भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है। अप्रैल के मध्य से ही शहर के कई मोहल्लों में जलसंकट है। जूट मिल, इंदिरा नगर, फटहामुड़ा, बाझीनपाली, अमलीभौना, दीनदयाल कालोनी, रामपुर जैसे क्षेत्रों में लोग पानी की किल्लत से जूझ रहे हैं। निगम द्वारा सप्लाई किए जाने वाले पानी के साथ ही बोर से निकल रहे पानी के प्रदूषित और असंतुलित मात्रा में खनिज होने के कारण शहर व ग्रामीण इलाकों में आरओ वाटर फिल्टर का उपयोग किया जा रहा है। इससे बड़ी मात्रा में जल की बर्बादी हो रही है।

*हम क्या कर सकते हैं*
शुद्ध पेयजल हमारा अधिकार है लेकिन इससे बर्बाद हो रहे पानी का सही उपयोग अगर हम जिम्मेदारी से करें तो पानी को बचाया जा सकता है। आमतौर पर आरओ फिल्टर रसोईघर में बेसिन (सिंक) के ऊपर लगा होता है। वेस्ट वाटर (आरओ से फिल्टर होने के बाद निकला हुआ बेकार पानी) वाला पाइप बेसिन में छोड़ा जाता है। आरओ चलने के बाद शुद्ध पानी तो कंटेनर में जमा हो जाता है लेकिन वेस्ट वाटर बेसिन के जरिए नालियों में चला जाता है। अगर हम इस पानी को किसी बर्तन या बाल्टी मेें एकत्र करें तो इससे पौधों की सिंचाई, घर की सफाई, कूलर के लिए उपयोग, वाहनों को धोने के लिए उपयोग में लाया जा सकता है।

*17 अप्रैल को प्रकाशित समाचार*

यूं समझिए- किसी वार्ड में जलसंकट होने से निगम दो हजार लीटर की क्षमता वाला पानी का टैंकर भेजकर जलापूर्ति करता है। व्यवसायिक व निजी आरओ फिल्टर मशीनों से हम लगभग तीन लाख लीटर पानी बहा देते हैं। मान लीजिए इतने पानी को जमाकर टैंकर में डाला जाए 15 टैंकर भर सकते हैं। यानी हर रोज कम से कम 8 वार्डों में जलसंकट होने पर दो-दो टैंकर पानी दिया जा सकेगा।

*आरओ प्लांट से कैसे होती है बर्बादी*

भास्कर ने अभियान चलाया है, जिसके तहत हम जल की बर्बादी के प्रमुख कारणों पर लोगों का ध्यान आकर्षित कर नागरिकों को बर्बादी रोकने के उपाय करने के लिए प्रेरित करेंगे। शहर में नौ व्यवसायिक आरओ प्लांट हैं, यहां प्रतिदिन 60 हजार लीटर पानी की खपत होती है। 60 हजार लीटर पानी को फिल्टर करने की प्रक्रिया में लगभग एक लाख 25 हजार लीटर बेकार मानकर मशीन से बाहर फेंका जाता है। संबंधित प्लांटों में लगी फिल्टर मशीनें 60-40 से लेकर 90-40ली. तक की क्षमता होती है। इसका मतलब जितना पानी छानकर शुद्ध किया जाता है उससे लगभग सवा दो से ढाई गुना पानी बर्बाद होता है। फिल्टर पानी से अलग होने वाला जल प्लांट संचालकों के किसी काम का नहीं रहता। इसलिए वे इसे बेकार समझ बहा देते हैं।

*यहां है जलसंकट*

शहर के बाहरी क्षेत्र ही नहीं बल्कि अंदरूनी इलाकों में भी पानी की समस्या बनी हुई है। जूट मिल इलाके के फटहामुड़ा वार्ड नंबर 32 में गर्मी के बढ़ने के बाद सार्वजनिक नलों में आने वाली पानी की सप्लाई बेहद कम हो गई है। एक बाल्टी भरने में 30 मिनट का समय लग रहा है। यहां सुबह दो और शाम को एक घंटे ही बोर चालू किए जाते हैं। लोगों को पर्याप्त मात्रा में इससे पानी नहीं मिल पा रहा है। यही वजह है कि पानी के लिए लोगों के बीच अब मारामारी की स्थिति बनने लगी है। फटहामुड़ा में महिलाएं पानी की किल्लत से जूझ रही है। वे वे नल चालू होने से पहले ही बर्तनों के साथ लाइन लगाकर पहले पानी लेने घंटों धूप में खड़ी रहकर मशक्कत कर रही है।

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