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सभ्यता तलवार बनाना सिखाती है तो संस्कृति चलाना - प्रोफेसर राधेश्याम सिंह


सुलतानपुर रील बनाने वाली पीढ़ी अपने रोल के बारे में नहीं सोच रही है यह दुर्भाग्यपूर्ण है।सभ्यता तलवार बनाना सिखा सकती है लेकिन तलवार चलाना किस पर है यह संस्कृति सिखाती है। इतिहास हमें यह सिखाता है कि हमसे पहले भी मनुष्य थे हमारे बाद भी मनुष्य रहेंगे। बीच की कड़ी में मनुष्यता कायम रख सकें यह हमारा काम है। यह बातें के एन आई पी एस एस के पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर राधेश्याम सिंह ने कहीं। वह राणा प्रताप स्नातकोत्तर महाविद्यालय के पुस्तकालय कक्ष में महाविद्यालय व उत्तर प्रदेश अभिलेखागार एवं संस्कृति विभाग के संयुक्त तत्वावधान में भारत की सांस्कृतिक धरोहर और अभिलेख संरक्षण की चुनौतियां विषय पर आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन समारोह को बतौर मुख्य अतिथि सम्बोधित कर रहे थे। राष्ट्रीय संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए भाजपा नेता पूर्व समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ एम पी सिंह ने कहा प्राचीन धरोहर स्थलों को आकर्षक बनाने की जरूरत है। धरोहर स्थलों को पर्यटन से जोड़ने पर इन्हें सहेजने में मदद मिलेगी। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह कम्पनियों के सीएसआर फंड को सांस्कृतिक धरोहरों के संरक्षण से जोड़ दें।विशिष्ट वक्ता राजा राम मोहन गर्ल्स पीजी कालेज अयोध्या की प्राचीन इतिहास विभागाध्यक्ष प्रोफेसर प्रज्ञा मिश्र ने कहा जब साहित्य और पुरातत्व एक ही बात करते हैं तब वह इतिहास बनता है। पुरातत्व से प्रमाणित हुये बिना किसी भी साहित्य को इतिहास नहीं कहा जा सकता। संत तुलसीदास पीजी कालेज के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. सतीश सिंह ने कहा कि धरोहरों के संरक्षण में जनसहभागिता को जोड़ना होगा। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ अजय कुमार ने कहा कि पत्थर की प्राचीन मूर्तियों पर सिंदूर का प्रयोग करके हमने उन्हें नष्ट कर दिया।उत्तर प्रदेश राजकीय अभिलेखागार एवं संस्कृति विभाग के सहायक निदेशक विजय श्रीवास्तव ने कहा कि प्राचीन काल से लेकर आज तक के अभिलेखों का संरक्षण करना हमारा काम है। पीवी कालेज प्रतापगढ़ के पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर बृजभान सिंह ने कहा कि ऋग्वेद में लिखा है कि जो कुछ हो रहा है केवल यज्ञ हो रहा है यज्ञ के सिवा कुछ नहीं है। लेकिन हमने इसके गूढ़ रहस्य को समझा ही नहीं । संत तुलसीदास पीजी कालेज के प्राचीन इतिहास विभागाध्यक्ष प्रोफेसर जीतेन्द्र तिवारी ने कहा कि हमें जागरुक होकर अपने आसपास के पुरातात्विक वस्तुओं और सांस्कृतिक धरोहरों को सहेजने के लिए काम करना चाहिए।दिन भर चली संगोष्ठी के विभिन्न तकनीकी सत्रों में विद्वानों ने अपने विचार व्यक्त किए। समापन सत्र का संचालन हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर इन्द्रमणि कुमार ने किया। स्वागत आयोजन सचिव डॉ प्रभात कुमार श्रीवास्तव व आभार ज्ञापन सह संयोजक प्राचीन इतिहास विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शैलेन्द्र प्रताप सिंह ने किया।इस अवसर पर गनपत सहाय पीजी कालेज के समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष प्रोफेसर शक्ति सिंह , आयोजन सचिव विनय कुमार विश्वकर्मा , समाजशास्त्र विभागाध्यक्ष बृजेश कुमार सिंह व असिस्टेंट प्रोफेसर ज्ञानेन्द्र विक्रम सिंह रवि समेत अनेक प्रमुख लोग उपस्थित रहे।

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