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अंकुरण ने नायरा को परिवार से मिलाया चार महीने से गायब मंदबुद्धि किशोरी रही बालिका आश्रम मे, सही नाम पता भी नही बता सकती थी


सुलतानपुर चार महीने पहले प्रतापगढ़ में रेलवे लाइन के किनारे मिली एक मंदबुद्धि किशोरी अपना नाम पता भी नही बता पा रही थी। उसे बालिका आश्रम लखनऊ में रखा गया। इलाज व काउंसिलिंग से पता चला कि सुलतानपुर के भदहरा गांव की है। बाल कल्याण समिति के माध्यम से पुलिस ने तलाश किया तो कोई जानकारी नही मिली क्योंकि उस गांव की किसी बालिका के लापता होने की कोई सूचना थाने पर नही दी गयी थी। गत दिनों सिक्किम में मिले पांच साल से गायब राम जी यादव को परिवार वालों से मिलाने में अंकुरण फाउंडेशन के सफल प्रयास की जानकारी होने पर बाल कल्याण समिति की सदस्य मजिस्ट्रेट सरिता यादव ने फॉउंडेशन के अगुवा डॉ आशुतोष श्रीवास्तव से मदद मांगी। तो नायरा के परिजनों को खोजने की जिम्मेदारी संस्था के सदस्य अधिवक्ता/पत्रकार जीतेन्द्र श्रीवास्तव को  दी गयी। किशोरी के बताए भदहरा गांव में उसके बारे में कुछ पता नही चला। तो उसके स्कूल बांसी जूनियर हाईस्कूल में छात्र छात्राओं से संवाद किया गया। वहाँ बदलू सिंह की बेटी शिप्रा के पांच साल पहले गायब होने की जानकारी मिली। जिसके सम्बन्ध में कुड़वार थाने में अपहरण का मुकदमा भी दर्ज है। दूसरे दिन स्कूल के शिक्षक प्रशांत पांडे ने बताया कि भदहरा गांव की एक बालिका अफरोज पुत्री इजहार भी चार महीने से गायब है पर कोई सूचना पुलिस को नही दी गयी है।  बडी उम्मीद से सीडब्लूसी की सदस्य/मजिस्ट्रेट सरिता यादव व ममता मिश्र के साथ अंकुरण के मुकेश व जीतेन्द्र श्रीवास्तव बदलू सिंह के साथ बांसी गांव गए लेकिन वीडियो कॉलिंग पर न तो नायरा ने अपने परिवारिजनों को पहचाना न ही बदलू सिंह के परिजनों ने किशोरी के शिप्रा होने की ही पुष्टि की।  न ही उसके चाचा मोनू, भाई सेबू और बहन खुशी ही मिले।  बस कुछ पहचान चिन्हों की तस्दीक हुई। वहीं पर हुई वार्ता के दौरान नायरा ने आसपास के कई गांव व बाजारों के नाम बताए। लेकिन स्पष्ट पहचान न हो सकी। फिर से अफरोज के घर वालों ने अंकुरण से संपर्क किया तो चाचा और भाई बहन के नाम पूछने पर मिलान हो गया। एक दिन बाद ही अंकुरण व बाल कल्याण समिति की टीम भदहरा  के तकीवा गांव जा पहुंची। फोटो देखते ही सबने एक स्वर से उसके अफरोज होने की बात कही।वीडियो कॉलिंग के दौरान ही किशोरी की पहचान हुई तो सबके आंखों में खुशी के आंसू बहने लगे। अफरोज ने दादी माता पिता भाई बहन  के साथ बुवा चाचा व परिवार के अन्य लोगो से हंस हंसकर बात की। पहचान की पुष्टि होने के बाद  उसे श्री दयानन्द बाल सदन से सोमवार रात लाकर परिजनों को सौंप दिया गया। 

अफरोज कैसे बनी नायरा

अफरोज के गायब होने की घटना जितनी गमगीन है उसके नायरा बनने की कहानी कम दिलचस्प नही है जिसकी वजह से वह परिजनों से इतने दिन दूर रही। परिवार वाले बताते हैं कि मंदबुद्धि होने के कारण उसके बर्ताव व क्रियाकलापों  से माता पिता असंतुष्ट रहते थे जिसके कारण अक्सर पिटाई कर देते थे। वह घर वालों से रूठती तो अपनी बुआ (चाची) के पास चली जाती और अधिकतर वही रहती थी। वहीं पर वह रोज टीवी सीरियल ये रिश्ता क्या कहलाता है देखती थी। इस दौरान सीरियल की नायिका नायरा के किरदार से इस तरह प्रभावित हुई कि खुद को नायरा ही समझने लगी। सहेलियों पड़ोसी लड़कियों से खुद को नायरा ही बताती थी। इतना ही नही वह नायरा की ही तरह पूजा और आरती करती और अपने छोटे भाई को राखी बांधती थी। यही वजह है लावारिश मिली तो पुलिस को अपना नाम नायरा और अपने पिता का नाम सूर्य प्रकाश सिंह बताया था। यह भी पता चला कि बालिका आश्रम में उसने एक सह संवासिनी से नमाज पढ़ना सीखने लगी तो उसके मुस्लिम होने का शक हुआ। जैसे जैसे मानसिक स्थिति ठीक हुई वह सब सही सही बताने लगी। जिसकी पुष्टि अब हुई है।

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