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जीव संरक्षक, पर्यावरण प्रेमी विजय प्रकाश नही रहे


सुल्तानपुर घर आंगन में फुदकने वाली गौरैया के वजूद को बचाने की मुहिम में ताउम्र जुटे जीव संरक्षक, पर्यावरण प्रेमी प्रकाश विजय नही रहे। उनका हमारा साथ भी तभी से था जब वे जिले में आए। अपने परिचित के कॉलेजों में उनके कई कार्यक्रम भी कराए। संकट में पड़ी गौरैया के वजूद को बचाने का उनका भागीरथ प्रयास सराहनीय रहा। डेढ़ दशक पहले छत्तीसगढ़ से यूपी के सुलतानपुर पहुंचे प्रकाश विजय ने मिशन गौरैया की स्थापना की। हजार से अधिक विद्यालयों में लाखों छात्र-छात्राओं को गौरैया एवं अन्य जीव संरक्षण के लिये जागरूक किया। लोंगो को निशुल्क कृत्रिम घोसले देना, खुद घोसलों को सार्वजनिक स्थानों पर लगाना, इस कार्य के लिये औरों को प्रेरित करना उनकी दिनचर्या में शुमार था। जियो और जीने दो का मन्त्र लेकर निकले प्रकाश विजय द्वारा औरों को प्रेरित करने का यह कार्य पूर्वांचल एवं अवध के कई जिलों में ताउम्र किया गया। पर्यावरण संरक्षण के लिए निःस्वार्थ, निष्काम भाव से जुटे प्रकाश विजय ने गौरैया को लेकर एक नई इबारत लिखी है। गौरैया की पुनर्वापसी पर विशेष काम के जरिए उन्होंने अपनी एक नई पहचान भी बनाई है। उनके द्वारा की जा रही इस सेवा के पीछे एक घटना का हाथ है जिसका दोषी खुद को मानकर पश्चाताप स्वरुप पूरा जीवन जीवों के संरक्षण में लगानें का उन्होंने संकल्प लिया। वर्ष 2007 की घटना है, जब वे छत्तीसगढ में थे। होटल से निकलते समय फैन का स्वीच आफ करना भूल गये। शाम को लौटे तो देखा कि पंखा के चलते ही दो पक्षी बेड पर मरे पड़े हैं। और उनके चूजे घोसले में चीं-चीं कर रहे हैं। इस करुणामयी दृष्य ने उनके अर्न्तमन को झकझोर दिया। मृत पक्षियों को दफनाया और चूजों को होटल के नौकर की मदद से दूसरी गौरैया के घोसले में रख दिया। अनजाने में हुए इस अपराध के लिये स्वयं को दोषी मान जीवन की शेष जिन्दगी बे जुबान पक्षियों के संरक्षण का संकल्प लिया। प्रायश्चित का यही तरीका मानकर निकल पड़े। आशियाना बना सुलतानपुर जिला। यहीं से इण्टर कालेजों, डिग्री कालेजों में बेजुबान पक्षियों के संरक्षण के साथ-साथ प्रकृति के संरक्षण के लिये भी भावी पीढ़ी को जागरुक करते रहें। प्रकाश विजय ने लोगों में सैकड़ों कृत्रिम घोसले बांटे, पानी पीने के बर्तन रखवाये व पक्षियों को दाना-पानी देने की आम जन से भी गुहार लगाई। स्कूलों में उनके सारे प्रोग्राम निःशुल्क होते हैं, बावजूद इसके कई कालेज तो अपने स्कूल में प्रोग्राम कराने से ही मना कर दिए, लेकिन पक्षियों के प्रति उपजे प्रकाश विजय के इस प्रेम के आगे हर उलाहने उन्हें बेमानी लगे। अपनी धुन में रमें रहे। आज वह लोगों के बीच जीव संरक्षक के रुप में न सिर्फ अपनी पहचान बनाई, बल्कि उनका यह भागीरथ प्रयास जमीन पर फलीभूत होता भी दिखा। कई स्थानों पर उनके द्वारा रखे कृत्रिम घोसले में गौरया वास कर रही है। उनके मिशन गौरया के कार्यो का दायरा बढ़ा, लेकिन प्रकाश विजय निराश हुए। भावुकता में लिए अपने निर्णय पर पछतावा भी रहा, कि उन्होंने इस कार्य को ही क्यों चुना।बातचीत दौरान ही कहा था कि उन्हें अब न जीने की ख्वाहिश है, न मरने का गम।अवध के आस पास जिलों में गौरैया बचाने की जो मुहिम उन्होंने छेड़ी थी वह उनके रहते ही हिचकोले खाने लगी थी। कभी गौरैया के लिए लड़े बाद में खुद के अस्तित्व की लड़ाई लड़े। मुफलिसी उनके मिशन पर भारी पड़ी। उन्हें वृद्धाश्रम में रात्रि गुजारनी पड़ी। दशक पहले विजय प्रकाश द्वारा तपश्चाताप के लिये शुरु हुआ मिशन गौरैया आन्दोलन बन गया था लेकिन उनकी स्वास्थ्य खराबी व लॉकडाउन के चलते आंदोलन की गति धीमी हुई और अब उनके जाने के बाद सब कुछ इतिहास हो गया। उनके आगे पीछे कोई नही था। उनकी जिंदगी की एक कहानी रही जो उन्हीं के साथ दफन हो गई। कुछ हसरतें भी अधूरी रह गईं। अब तो यादें ही शेष हैं। सपा के प्रदेश प्रवक्ता व पूर्व विधायक अनूप संडा उनके सुख-दुख के साथी रहे जो अंतिम समय तक मददगार भी बने रहे। पूर्व विधायक की टीम व उनके समर्थकों द्वारा  विजय प्रकाश का अंतिम संस्कार सुल्तानपुर में गोमती नदी के तट पर किया गया।

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