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सुलतानपुर की सबसे अलग दुर्गापूजा: देश भर दशमी पर खत्म होता है दशहरा; यहां रावण का पुतला दहन कर शुरु होता हैं दुर्गापूजा का मेला, पूर्णिमा पर होता है समापन


सुलतानपुर असत्य पर सत्य की जीत करते हुए भगवान राम ने लंका के दुराचारी रावण का वध करके दुनिया को दशमी के दिन अत्याचार से मुक्त कराया था। इस क्रम में आज उत्तर प्रदेश के सुलतानपुर में भी रावण का पुतला दहन करके दुर्गापूजा का त्योहार मनाया गया।

बता दें कि देश भर में यहां कि दुर्गापूजा सबसे अलग है। देश में जहां दशमी पर दशहरा खत्म होता है वहीं यहां रावण का पुतला दहन कर दुर्गापूजा का मेला शुरु होता है। फिर पूर्णिमा पर इसका समापन होता है।गौरतलब हो कि जिले में दुर्गापूजा का शुभारंभ 1959 में ठठेरी बाजार में भिखारीलाल सोनी व उनके सहयोगियों ने शुरू किया था।

यहां से शुरू हुआ दुर्गापूजा का सिलसिला समय के साथ ही बढ़ता ही गया। दूसरी मूर्ति की स्थापना रुहट्ठा गली में बंगाली प्रसाद सोनी ने 1961 में कराई। 1970 में दो प्रतिमाएं और जुड़ीं। इसके अगले वर्ष कालीचरन ने श्री संतोषी माता और राजेंद्र प्रसाद (रज्जन सेठ) ने मां सरस्वती की प्रतिमा की स्थापना कराई। 1973 में श्री अष्टभुजी माता, श्री अंबे माता, श्री गायत्री माता, श्री अन्नपूर्णा माता की स्थापना के साथ ही दुर्गापूजा महोत्सव में तब्दील हो गया।सुलतानपुर में 62 वर्ष से चले आ रहे दुर्गापूजा महोत्सव में पिछले वर्ष तक जिले में कुल 895 स्थानों पर दुर्गा प्रतिमाएं स्थापित होती रही हैं।जिले में दुर्गापूजा महोत्सव का बड़ा महत्व है पूरे जनपद में इस महोत्सव को उल्लास के साथ मनाया जाता है। शहर में ही करीब 200 पंडाल बनाए जाते हैं। ग्रामीण अंचलों को मिला लिया जाय तो यह संख्या 895 हो जाती है। इसमें देवी के अलग-अलग रूप की मूर्तियां स्थापित होती हैं।कहीं सुपारी से निर्मित प्रतिमा तो कहीं रुद्राक्ष से निर्मित प्रतिमा तो कहीं मोती से निर्मित प्रतिमा  स्थापित की जाती हैं। ठठेरी बाजार में बड़ी दुर्गा की स्थापना की जाती है। बाटा गली में गुफा बनाकर देवी प्रतिमा स्थापित होती हैं। विवेकनगर, करौंदिया, लखनऊ नाका, शाहगंज चौराहा समेत अन्य प्रमुख मोहल्लों और जिले के बाजारों में देवी प्रतिमाएं स्थापित कर दुर्गापूजा महोत्सव मनाया जाता है। कहा तो यह भी जाताा है कि दुर्गा पूजा कोलकाता के बाद सुल्तानपुर देश में दूसरे स्थान पर है।

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