मासूम की हत्या में 13 वर्ष पूर्व बरी हो चुके 'रामखेल' को सेशन कोर्ट ने ही माना दोषी,सुनाई आजीवन कारावास
सुलतानपुर। मासूम की गला दबाकर हत्या करने के मामले में हाईकोर्ट के आदेश पर पुनः विचारण कर रही एफटीसी प्रथम की अदालत ने पूर्व में पारित सत्र न्यायालय के फैसले को पलट कर बरी हुए आरोपी को दोषी करार दिया है। न्यायाधीश पीके जयंत ने दोषी को आजीवन कारावास एवं 15 हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई है।मामला संग्रामपुर थाना क्षेत्र के रामापुर गडेरी गांव से जुड़ा है। जहां के रहने वाले अभियोगी लल्लन ने सात जनवरी 2006 की घटना बताते हुए मुकदमा दर्ज कराया। आरोप के मुताबिक उसका चार वर्षीय पोता रिंकल पुत्र हेमंत कुमार दिन में खेलता हुआ बाहर निकला, लेकिन बाद में उसका पता नहीं चला। देर शाम तक परिवारी जनों ने काफी तलाश की लेकिन बच्चा नहीं मिला। रात में करीब 8:30 बजे गांव के ही लक्ष्मण पासी के घर के पीछे निर्माणाधीन लैट्रिन के पास बच्चे की हत्या कर फेंकी लाश मिली। अभियोगी ने गांव के ही आरोपी रामखेल के खिलाफ पुरानी रंजिश के चलते बच्चे की गला दबाकर हत्या कर देने का आरोप लगाते हुए तहरीर दी। इस मामले में आरोपी के खिलाफ भादवि की धारा 302, 201 में मुकदमा दर्ज हुआ। प्रकरण की तफ्तीश विवेचक केएन शर्मा को मिली, जिन्होंने उपलब्ध साक्ष्यों के आधार पर आरोपी रामखेल सरोज के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया। जिसके पश्चात मामले का विचारण तत्कालीन एफटीसी तृतीय की अदालत में चला। मामले का विचारण पूर्ण होने के पश्चात तत्कालीन एफटीसी तृतीय की कोर्ट ने 11 जनवरी 2008 को अपना फैसला सुनाते हुए मौजूद साक्ष्यों को रामखेल के खिलाफ पर्याप्त न मानते हुए उसे निर्दोष मानकर बरी कर दिया। अभियोगी लल्लन ने एफटीसी कोर्ट के इस फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी और पर्याप्त सबूत होने के बावजूद भी अदालत के जरिए उचित फैसला न देने का आरोप लगाया। हाईकोर्ट ने मामले में सुनवाई के पश्चात अभियोगी लल्लन की निगरानी याचिका को स्वीकार करते हुए एफटीसी तृतीय के फैसले को निरस्त कर दिया और सेशन कोर्ट को प्रकरण में पुनः विचारण कर उचित फैसला करने के लिए पत्रावली प्रेषित कर दी। हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच से पारित इसी आदेश के क्रम में मामले का विचारण एफटीसी प्रथम की अदालत में स्थानांतरित हुआ। जिसमें अदालत ने उभय पक्षो को अपने-अपने साक्ष्य प्रस्तुत करने के पर्याप्त अवसर दिये। इस दौरान बचाव पक्ष के अधिवक्ता ने अपने साक्ष्यो एवं तर्को को पेश करते हुए रामखेल को पुनः बेकसूर बताया। वहीं शासकीय अधिवक्ता दान बहादुर वर्मा ने पेश गवाहों एवं अन्य सबूतों के आधार पर रामखेल को ही घटना का जिम्मेदार बताया। शासकीय अधिवक्ता ने कोर्ट को यह भी बताया कि अभियोजन के गवाह पृथ्वीपाल यादव के सामने आरोपी रामखेल ने घटना को अंजाम देने के बाद तत्कालीन ब्लाक प्रमुख रमाशंकर सिंह के यहां उनके सामने मासूम बच्चे की हत्या कर देने के अपराध को कबूल किया था और उनसे मदद मांगी थी। फिलहाल पूर्व ब्लाक प्रमुख ने उसकी किसी प्रकार की सिफारिश एवं मदद करने से साफ इंकार कर दिया था। इसके अलावा अन्य कई साक्ष्य भी पेश किये, जिससे रामखेल को घटना का जिम्मेदार मानने का पर्याप्त सबूत दिखा। उभय पक्षो को सुनने के पश्चात सत्र न्यायाधीश पीके जयंत ने आरोपी रामखेल को मासूम बच्चे की हत्या एवं साक्ष्य मिटाने के प्रयास करने के आरोप में दोषी ठहराया। जिसे अदालत ने आजीवन कारावास एवं 15 हजार रुपये अर्थदंड की सजा सुनाई है। एफटीसी प्रथम/ विशेष न्यायाधीश एमपी-एमएलए की अदालत से हुए इस फैसले से 13 वर्ष पूर्व इसी आरोप में बरी हो चुके रामखेल को बड़ा झटका लगा है और अपनी करनी की सजा मिली है। इतने वर्षों बाद न्याय मिलने पर मासूम बच्चे के परिजनों ने अदालत पर भरोसा जताते हुए कहा कि उनकी पैरवी व मेहनत की वजह से अदालत ने पुनः मामले को सुना और आज सही न्याय मिला। अभियोजन पक्ष पूर्व में पारित निर्णय को स्वीकार कर यदि चुप होकर बैठ जाता तो शायद आज मासूम की हत्यारे को उसके करनी की सजा न मिलती।
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