जब लाश तक को शव वाहन नही दे सकती है, तो आम जनता से टैक्स क्यों वसूलती है सरकार
सुलतानपुर। शनिवार को सोशलमीडिया में दिन भर छाया रहा कि किस तरह एक व्यक्ति अपने मरे हुए साढ़े तीन साल के पौत्र की लाश को कन्धे पर लाद कर पैदल शहर की सड़क दर सड़क भटक रहा था। पीछे पीछे उसकी दादी रोते-बिलखते चल रही थी। जो भी शहर का बाशिंदा इस दृश्य देखता तो विचलित हो जाता है। शहर के जिला अस्पताल में पैसा न दे पाने के कारण उसे निशुल्क शव वाहन नही मिल पायी वो भी इस समय जबकि पूरा देश कोरोना काल में मेडिकल सुविधाओं को लेकर युद्ध स्तर पर हाई अलर्ट है ।सरकारी जिला अस्पताल में हो रही इस तरह की संवेदनहीनता को देखकर काउंसिल आफ उद्योग व्यापार मंच के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डी पी गुप्ता ने मामले की शिकायत भारत के प्रधानमंत्री सहित राष्ट्रपति महोदय को ईमेल के माध्यम से किया।इस अवसर पर उन्होंने कहा कि चूँकि सरकार जब मरे हुए एक बच्चे को एम्बुलेंस तक नही दे सकती तो उसे देश की जनता व व्यापारियों से टैक्स वसूलने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है। आखिर टैक्स वसूलने के बाद भी गरीब जनता को मेडीकल सुविधा क्यों नही देती सरकार। देश में धन की भी कोई कमी नहीं है क्योंकि हर बार की तरह इस बार भी आपदा काल में सरकार के आह्वान पर देश के तमाम नागरिकों ने स्वेच्छा से भारी धनराशि राहत कोष में दान दिया है।वक्त आ गया है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी निचले स्तर पर पनप गयी भ्रष्टाचार प्रणाली पर भी सीधा सर्जिकल स्ट्राइक करें । उन भ्रष्ट अधिकारियों पर रोक लगाया जाए जो आवंटित करोड़ों रुपये के बजट का अधिकांश हिस्से को लिखा पढ़ी की जादूगरी से फाइल में ही खर्च कर देते हैं। संविधान निर्माताओं ने तो यही व्यवस्था दी थी कि सम्पन्न लोगों से टैक्स वसूल कर ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित की जाए कि देश के गरीब जनता को भी जीवन जीने के लिए बुनियादी सुविधाएं मिल सके। आज दुखद स्थिति है कि गांवों कस्बों से ईलाज के लिए जिला मुख्यालय आये गरीब और असहाय लोगों को संवेदनाहीन व्यवहार का सामना करना पड़ता है। देश का मध्यम वर्ग जो आवाज़ उठाने में सक्षम है वो या तो अपने में व्यस्त है या फिर राष्ट्रीय न्यूज़ चैनलों के माध्यम से हो रहे डिबेटों से हमेशा उलझा रहता है। समाज के असहाय लोगों को किस स्थिति का सामना करना पड़ रहा है उस तरफ उसका ध्यान ही नही जाता । वह तो कभी पाकिस्तान तो कभी चीन तो कभी कश्मीर तो कभी आतंकवाद तो कभी हिन्दू मुस्लिम और जब कभी इनसे उभरता है तो जातिवाद में उलझा दिया जाता है। आम जनता का ध्यान बुनियादी समस्याओं की तरफ जाता ही नहीं या फिर वो मान चुके है कि ये सिस्टम ऐसे ही रहेगा इसमे कुछ सुधार हो नही सकता है। पांच साल से जिले में ट्रामा सेंटर बन रक्खा है पर चालू नही हुआ है। स्थानीय समाजसेवी गण जब इस मुद्दे को उठाते हैं तो शहर का मध्यम वर्ग भी उसे खबर की तरह पढ़ कर भी उदासीन बना रहता है।समस्त जनता की सामूहिक सहभागिता न हो पाने के कारण ट्रामा सेंटर चालू करने की मांग दब जाती है।काउंसिल ऑफ उद्योग व्यापार मंच के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डी पी गुप्ता ने सरकार से मांग किया कि जिस तरह से व्यापारियों से टैक्स वसूलने के लिए सशक्त मानिटरिंग सिस्टम बना रक्खा गया है, तो वैसी ही ठोस कार्य प्रणाली सरकार विकसित करे ताकि निचले स्तर पर हर गरीब को हर वो स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधा आसानी से उपलब्ध हो सके जो सरकारी योजना के तहत जनता में भेजी जा रही है।
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