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निजी स्कूलों में अब फीस पर नहीं चलेगी मनमानी


लखनऊ प्रदेश में अप्रैल से नया शैक्षणिक सत्र शुरू होने से पहले, निजी स्कूलों की फीस वसूली को लेकर शासन ने सख्ती बरतने का फैसला किया है।मंगलवार को मंडलायुक्त डॉ. रोशन जैकब ने सभी जिलाधिकारियों, जिला विद्यालय निरीक्षकों, बेसिक शिक्षा अधिकारियों और मंडलीय संयुक्त शिक्षा निदेशकों को निर्देश भेजकर उत्तर प्रदेश स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय (शुल्क विनियम) अधिनियम 2018 और उसके 2020 के संशोधन का कड़ाई से पालन सुनिश्चित कराने के आदेश दिए हैं।हालांकि यह नियमावली पहले से है। लेकिन कई स्कूल इसका पालन ही नहीं कर रहे। नियमानुसार जिला शुल्क नियामक समिति के अनुमोदन के बाद ही स्कूल फीस, ड्रेस या पुस्तकों को लेकर बदलाव कर सकते हैं। बावजूद कई स्कूल हर साल किताब और यूनिफार्म बदलकर अभिभावकों पर आर्थिक बोझ बढ़ाते हैं।नियम के अनुसार हर स्कूल को अलग-अलग कक्षाओं के लिए अपनी फीस संरचना निर्धारित करनी होगी। सत्र शुरू होने से 60 दिन पहले स्कूलों को अपनी फीस का पूरा विवरण जिला शुल्क नियामक समिति को देना अनिवार्य होगा। फीस की जानकारी स्कूल की वेबसाइट और सूचनापट पर प्रकाशित करनी है। अभिभावकों पर अनावश्यक आर्थिक बोझ न पड़े, इसके लिए फीस का भुगतान मासिक, त्रैमासिक या अर्द्धवार्षिक किश्तों में ही किया जा सकेगा। वार्षिक फीस वसूली पर पूरी तरह रोक है।कोई भी स्कूल प्रवेश के नाम पर डोनेशन नहीं वसूल सकेगा। बिना अनुमति के कोई भी स्कूल अतिरिक्त शुल्क नहीं ले सकेगा। हर शुल्क के लिए स्कूलों को रसीद जारी करनी होगी, जिससे फीस वसूली की प्रक्रिया पारदर्शी बनी रहे।कोई भी स्कूल छात्र-छात्राओं को किताबें, यूनिफार्म, जूते-मोजे किसी खास दुकान से खरीदने के लिए बाध्य नहीं कर सकता। हर साल यूनिफार्म बदलने पर रोक रहेगी। बिना अनुमति पांच साल तक स्कूल ड्रेस में बदलाव नहीं होगा। यदि बदलाव जरूरी हुआ तो जिला शुल्क नियामक समिति की मंजूरी अनिवार्य होगी।स्कूलों को अपनी फीस और अन्य आय को तय नियमों के अनुसार ही खर्च करना होगा। सभी जिलाधिकारियों को निर्देश दिया गया है कि वे एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करें ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि निजी स्कूल इन नियमों का पालन कर रहे हैं या नहीं।मंडलीय संयुक्त शिक्षा निदेशक डा. प्रदीप कुमार सिंह के अनुसार, उत्तर प्रदेश स्ववित्तपोषित स्वतंत्र विद्यालय शुल्क विनियम अधिनियम 2018 के तहत निजी क्षेत्र में संचालित पूर्व प्राथमिक, प्राथमिक, हाईस्कूल, इंटरमीडिएट कालेजों के लिए यह दिशा निर्देश पहले से ही हैं। इसमें सभी संभावित शुल्क को मिलाकर 20 हजार रुपये वार्षिक से अधिक है तो उन विद्यालयों को इस आदेश का सख्ती से पालन करना होगा।

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