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जहां चूहे की मौत पर दर्ज होती है FIR वहां आदमी की मौत पर है इन्साफ की दरकार - डी पी गुप्ता


सुलतानपुर बदायूं में जब पिछले साल एक चूहे की मौत पर एफआईआर दर्ज हो कर उसकी पोस्ट मार्टम रिपोर्ट और 30 पन्ने की चार्जशीट कोर्ट में दाखिल हो सकती है तो सुल्तानपुर के मेडिकल कॉलेज में चिकित्सा में देरी से हो रही मरीजों की मौत पर भी मुकदमा दर्ज होना चाहिए। ज्ञात हो कि मेडिकल कॉलेज सुल्तानपुर में एक तरफ सीरियस मरीज के परिजन इमरजेंसी से लेकर ओपीडी की भागदौड़ करते रहे और उधर इलाज के इंतजार में लेटी एक वृद्धा मौत की आगोश में चली गई। इसके पूर्व भी दो मरीजों की हुई मौत की जांच अभी पूरी नहीं हुई थी कि एक और मरीज की मौत की खबर अखबार में पढ़ कर समाज में सरकारी मेडिकल सिस्टम के प्रति निराशा फैल गई। वैसे तो कुछ परिजनों की जागरूकता के चलते तीन मरीजों की मौत मीडिया की जानकारी में आ गई है पर न जाने कितनी ऐसी मौत हुई होगी जो संज्ञान में नहीं आ पायी होगी। अक्सर दूर दराज के परिजन लापरवाही से हुई अपने मरीज की मौत को भगवान की मर्जी मान कर लाश लेकर घर वापस चलें जातें हैं। अस्पताल कर्मियों की संवेदनहीनता से आहत हो कर मानव अधिकार एक्टीविस्ट डी पी गुप्ता एड पत्रकार ने उ प्र के उप मुख्यमंत्री माननीय बृजेश पाठक को समाचारपत्र में प्रकाशित खबर को ट्वीट कर इस पर संज्ञान लेने की मांग की है।समाजसेवी डी पी गुप्ता एड पत्रकार ने कहा कि राज्य सरकार जनता के टैक्स से प्राप्त करोड़ों अरबों रुपए का बजट खर्च कर इस उद्देश्य से सरकारी मेडिकल कॉलेज हॉस्पिटल का निर्माण करती है कि देश की गरीब से गरीब जनता को समय रहते उसकी जरूरत के हिसाब से इलाज मुहैया हो सके। भारत का संविधान हर मरीज को उसकी उचित चिकित्सा का अधिकार देता है। पर दुर्भाग्य है कि मरीजों के इलाज करने के नाम पर भारी भरकम सैलरी उठाने वाले कुछ अधिकारी, कर्मचारी अपने कर्तव्यों को निभाने के प्रति उदासीन हैं। हास्पिटल में पहुंचने के बावजूद अगर मरीज इलाज के अभाव से मर जाता है तो इसे मरीज के संवैधानिक अधिकार का हनन और आपराधिक घटना मानी जानी चाहिए। अक्सर देखा गया है कि उच्चशिक्षा प्राप्त ऐसे आरोपी कानून के तकनीकी दांव पेंच का इस्तेमाल कर मामले को मैनेज कर निपटा देते हैं। प्रशासन को ऐसी घटनाओं की एक ऐसी इकाई से स्वतन्त्र रूप से जांच करानी चाहिए जो किसी भी लाबी के दबाव में न आ सके।

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